Friday, April 22, 2011

गांवों में रोजगार के अवसर



गांवों की परिकल्पना करते ही नजरों के सामने एक सुन्दर हरा - भरा सा दृश्य  घूमता दिखाई देता है। लेकिन वर्तमान समय में गांवों की स्थिति खराब होते जा रही है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण ग्रामीण क्षेत्रों के युवाओं की सोच में हो रहा परिवर्तन है। ग्रामीण युवा आज जीविकोपार्जन के लिए हर की ओर पलायन कर रहें हैं जबकि संचार और अन्य क्षेत्रों में गांवों के लिए बड़ी तेजी से विकास कार्य किए जा रहें हैं ताकि उन्हें अपनी आजीविका के लिए बाहर जाने की आवश्यकता  न हो। दे के कुल ग्रामीण इलाकों में सार्वजनिक पीसीओ की संख्या लगभग 17.18 लाख है जो किसी न किसी रूप में युवाओं के लिए रोजगार का अवसर प्रदान कर रहें हैं।

भारत में जब संचार क्रान्ति की शुरुवात हुई तो लोगों ने सपने में भी नहीं सोचा था कि यह विकास में ही योगदान नहीं देगा बल्कि उनकी जीविका का साधन भी बन सकता है। भारतीय अर्थव्यवस्था में दूरसंचार की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है। वर्तमान समय में जिस अनुपात में संचार सुविधाओं का अनुपात हो रहा है,उससे भी कहीं अधिक तेजी के साथ युवाओं के लिए रोजगार के साधन विकसित हो रहें हैं। आज इंटरनेट आम आदमी की आवश्यकता  बनता जा रहा है। इंटरनेट के तेजी से हो रहे विस्तार के कारण आज गांवों में भी साइबर ढाबे खुल रहें हैं। इसकी उपलब्धियों एवं विकास को देखते हुए केन्द्र सरकार भी इस मद में सहायता दे रही है। गांवों के सचिवालय को जहां इन्टरनेट से जोड़ा जा रहा है , वहीं पीसीओ खोलने, मोबाइल शॉप आदि के लिए ऋण तक की व्यवस्था की जा रही है।

विभिन्न विकासशील  देशों  से चार कदम आगे बढ़कर भारत संचार सेवाओं के विस्तार के सिरमौर बनता जा रहा है। इतना ही नहीं राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में दूरसंचार क्षेत्र का योगदान तेजी से बढ़ रहा है। आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2006-07 में जहां भारतीय अर्थव्यवस्था में दूरसंचार की भागीदारी 2.73 फीसदी थी वहीं  वर्ष 2008-09 में यह बढ़कर 3.14 फीसदी पर पहुँच  गयी। विकास का पहिया यहीं नहीं रूक कर बल्कि और तेजी से बढ़ता है,जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 2009-10 में संचार क्षेत्र की भागीदारी 5.4 फीसदी तक पहुँच  गयी। संभावना जताया जा रहा है कि यह इसी गति से और अग्रसरित होती रहेगी। दूरसंचार क्षेत्र का सकल राजस्व भी बढ़ रहा है। मार्च, 2007 में जहां सकल राजस्व 1172.68 सौ अरब था वहीं वर्ष 2010 मार्च में 1579.85 सौ अरब पहुँच  गया है।

दूरसंचार की औद्योगिक स्थिति पर अगर गौर करें तो 1991 तक यह पूरी तरह से सरकारी क्षेत्र के अन्तर्गत था। सरकार द्वारा इसके विस्तार की योजना बनायी गयी।आरम्भ में भारत के चार महानगरों दिल्ली,कोलकाता,चेन्नई व मुम्बई में मोबाइल सेवा प्रारम्भ करने की योजना बनायी गयी और निजी क्षेत्र को भी आमंत्रित किया गया । इसके पीछे मूल उद्देश्य  प्रत्येक व्यक्ति तक आसानी से यह सुविधा मुहैया कराना था , जिससे प्रत्येक व्यक्ति अपनी सुविधा के अनुसार कंपनी का चयन करे और प्रतिस्पर्धी बाजार में स्वयं को खड़ा कर सके। वर्ष 2003 में लाइसेंस की प्रक्रिया शुरू  हुई और वर्तमान में यूएएस के 12-14 लाइसेंसधारी हैं, जिससे स्पष्ट है कि इस क्षेत्र में कड़ी प्रतिस्पर्धा के साथ ही उपभोक्ता को भी लाभ मिल रहा है।

अगर हम आंकड़ों की ओर गौर करें तो वर्ष 1996 में कुल 119.3 टेलीफोन कनेक्शन  थे। इसमें 27.03 लाख कनेक्शन  अकेले ग्रामीण क्षेत्रों के थे। स्वाभाविक रूप से ग्रामीण एवं शहरी  क्षेत्र में उस समय फोन  का विस्तारण बहुत कम था। जिसे देखते हुए सरकार ने टेलिफोन विस्तार के तहत गांवों में सार्वजनिक टेलीफोन केंद्र की नीति बनाई। इसके परिणामस्वरूप टेलिफोन सेवा का तेजी से विस्तार हुआ है। अगस्त 2010 में जारी विभागीय आंकड़ों के अनुसार इस समय दे में टेलीफोनों की संख्या 7063.85 लाख है। इसमें वायरलाइन 373.26 लाख हैं जबकि वायरलैस 6706.20 हैं। इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में 2302.44 लाख कनेक्शन हैं। जाहिर है कि दूरसंचार सूचना तकनीकी की जीवनरेखा बन गया है तो जीविकोपार्जन का साधन भी।

भारत में दूरसंचार के क्षेत्र में प्रमुख आंकड़े -
.           27 अरब घंटे प्रत्येक माह दुनिया का इंटरनेट पर गुजरता है ।
.           1.7 अरब घंटे याहू साइट पर।
.           2.5 अरब घंटे गूगल साइट पर ।
.           3.9 अरब घंटे माइक्रोसाफ्ट साइटों पर ।
.           1.4 अरब घंटे सोशल  साइट पर।
.           10 लाख घंटे डाटकाम एवं डाटा नेट जोमेन पंजीकृत है।

ग्रामीण सार्वजनिक टेलिफोन -
                     मार्च 2010                       अगस्त 2010
                                           
                                                 565960                                                               567432

   पीसीओ                     18.58                                                                 17.17
                                           
                                                मार्च 2010                                                अगस्त 2010

घनत्व                       52.74 फीसदी                       59.63 फीसदी

ग्रामीण                      24.31 फीसदी                              27.76 फीसदी       

मोबाइल का प्रचलन तेजी से बढ़ा तो तो इस क्षेत्र में भी रोजगार की संभावनाएं बढ़ गई।  हर ही नहीं खासतौर से ग्रामीण क्षेत्रों में इसका कारोबार बढ़ा है। षहरों में जहां मोबाइल खराब होने के बाद लोग नए मोबाइल सेट खरीदना पसंद करते हैं वहीं गांवों में ऐसी स्थिति नहीं है। यहां लोग नया सेट न लेकर पुराने को ही बनवाना अधिक उचित समझते हैं,यही कारण है कि मोबाइल मेंटनेंस की दुकानें  हरों की अपेक्षा गांवों में अधिक होती जा रहीं हैं। अब जरूरत है तो सिर्फ यहां रह रहें युवाओं को चेतने की और दूरसंचार के बढ़ रहे विस्तारीकरण को समझते हुए गांवों में ही जीविकोपार्जन के माध्यम को तला ने की ।

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